Haryana Geeta Festival 2019
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में अनूठी कला के दर्शन, देखें शिल्प और सरस मेले की खासियत
पानीपत/कुरुक्षेत्र, [विनीश गौड़/अश्वनी धनौरा/विनोद चौधरी]। कुरुक्षेत्र धर्मनगरी इन दिनों अनूठे रंग में रंगी नजर आ रही है। एक तरफ धर्म और आस्था तो दूसरी तरफ लोकसंस्कृति भी देखने को मिल रही है। ब्रह्मसरोवर तट अलग-अलग रंग की रोशनी से नहा रहा है। दूर दराज से आने वाले पर्यटकों को लोकसंस्कृति, नृत्य और शिल्पकलाओं को करीब से जानने का मौका मिल रहा है। इस महोत्सव में शिल्प और सरस मेले का अनूठा रंग हर किसी को रास आ रहा।
मूक-बधिर बच्चों की प्रतिभा के कायल हो रहे शिल्प व सरस मेले में आने वाले पर्यटक
मूक-बधिर बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं होती, बशर्ते उन्हें सही समय पर अपनी प्रतिभा को निखारने का मौका मिले। अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव में हरियाणा वेलफेयर सोसाइटी फॉर पर्सन्स विद स्पीच एंड हियरिंग इंपेयरमेंट द्वारा लगाया गया एक स्टॉल यही संदेश दे रहा है। प्रदेश के आठ स्कूलों में चल रहे विशेष स्कूलों में मूक बधिर विद्यार्थियों द्वारा बनाए गए आर्ट एंड क्राफ्ट को इस स्टॉल पर प्रदर्शित किया गया है।
हर कोई तारीफ कर रहा
पर्यटक मूक-बधिर बच्चों द्वारा बनाए गए इस सामान की न केवल तारीफ करते थक रहे हैं बल्कि इन्हें खरीदने की भी इच्छा जाहिर कर रहे हैं। मगर मूक-बधिर विद्यार्थियों द्वारा बनाए गए इस सामान को सिर्फ उन लोगों के लिए प्रदर्शित किया गया है जो लोग ऐसे विशेष बच्चों को मंदबुद्धि या किसी और कारण से घर में ही बंद करके रख लेते हैं या उन्हें घर से बाहर निकालने से घबराते हैं। ऐसे बच्चों को खुले आसमान में उडऩे का मौका देने के लिए यह स्टॉल एक मार्गदर्शन करने का काम कर रहा है।
सिलाई कढ़ाई ही नहीं, खेल में भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचे ये बच्चे : विजय कुमार
सोसाइटी की ओर से करनाल में बनाए गए स्कूल में फिजिकल एजुकेशन शिक्षक विजय कुमार ने कहा कि बोरियों को सिलने के लिए प्रयोग की जाने वाली सुथली, ऊन, कागज और गत्ते से तैयार शोपीस आइटम मूक-बधिर विद्यार्थियों द्वारा ही तैयार किए गए हैं। इसके अलावा कपड़े से पर्स, टैडीबीयर, कपड़े, बंदरवाल जैसे सजावटी सामान को भी इन्हीं विद्यार्थियों ने तैयार किया है।
देश विदेश में भी नाम रोशन कर रहे ऐसे विद्यार्थी
विजय कुमार ने बताया कि सोसाइटी की ओर से यहां पर प्रदर्शनी लगाने का एक ही मकसद है कि हजारों ऐसे बच्चे जो मूक-बधिर या विशेष आवश्यकता वाले बच्चे होते हैं उन्हें परिजन घर से बाहर निकालते हुए डरते हैं। जितने ज्यादा विद्यार्थी ऐसे स्कूलों में होने चाहिए उतने नहीं है। जबकि दिव्यांग विद्यार्थी केवल यही नहीं बल्कि देश विदेश में अपना, अपने माता-पिता, जिला, प्रदेश और देश का नाम रोशन कर रहे हैं। गुरुग्राम में दो विद्यार्थी हैं जिनका चयन जूडो की अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में हुआ है। इससे पहले वे नेशनल खेलेंगे। मूक-बधिर विद्यार्थियों को अगर समय पर ठीक प्रशिक्षण और अक्षरज्ञान मिल जाए तो वे खेल, कला, शिक्षा और किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रहेंगे। इस तरह के आयोजन में प्रदर्शनी लगाने का यही मकसद है कि लोग ऐसे बच्चों को घर में न बैठाएं बल्कि उन्हें अपनी प्रतिभा को निखारने का मौका दें, ताकि वे अपने जीवन के उद्देश्य को सिद्ध कर सकें।
इनोवेशन हब में डिजिटल वल्र्ड के गूढ़ रहस्य को जान रही नई पीढ़ी
अगर आप सड़क पर चल रहे हैं तो स्ट्रीट लाइटें आपके पास पहुंचने पर जल रही हैं आगे निकलने पर बंद हो रही हैं, कड़ाके की ठंड में आपको अपनी रजाई में पड़े-पड़े घर का दरवाजा खोलना है और बंद करना है। इतना ही नहीं छत पर रखी टंकी में पानी भरना है या विदेश में बैठकर अपने घर की लाइटें ऑन-ऑफ करनी हैं, यह सब इंटरनेट ऑफ थिंग (आइओटी) से जुड़कर संभव हो पा रहा है। इसमें से बहुत कुछ विकसित देशों में लोगों की दिनचर्या को आसान भी बना रहा है। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2019 में पहुंची नई पीढ़ी डिजिटल युग के इन्हीं गूढ़ रहस्यों के बारे में समझ रही हैं।
डिजिटल युग से हो रहे रूबरू
जिला सूचना एवं विज्ञान केंद्र की ओर से ब्रह्मसरोवर के पूर्वी किनारे पर बने उवर्शी घाट की छत पर तैयार की गई इनोवेशन हब में स्कूली बच्चों को इसी डिजिटल युग की बारीकी से जानकारी दी जा रही है। ना केवल जानकारी दी जा रही बल्कि उन छोटी-छोटी डिवाइस को भी दिखाया जा रहा है जिनसे यह सब संभव हो रहा है। इसकी खास बात यह है कि इन सब कामों के लिए कोई ज्यादा मोटा खर्च भी नहीं करना पड़ता। इनके लिए कोई अलग से रिमोट की भी जरूरत नहीं है। यह सब आपके हाथ में रखे मोबाइल से ही संभव है। इनमें से बहुत से काम ऐसे हैं जो छोटी-छोटी डिवाइस से तैयार किए जा सकते हैं।
विकसित देश कर रहे टेक्नालॉजी को इस्तेमाल
इस इनोवेशन हब में पहुंचने वाले स्कूली बच्चों को दिखाया जा रहा है कि विकसित देश नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में हम सब को भी इनकी जानकारी होनी चाहिए। इनकी जानकारी होने पर ही हम जान सकेंगे कि यह कोई कठिन काम नहीं है, बल्कि बहुत आसान है। विकसित देशों में लोग इन्हीं चीजों के इस्तेमाल से अपनी दिनचर्या को आसान बना रहे हैं।
दिखाया जा रहा स्मार्ट होम
यहां पर स्कूली बच्चों को एक स्मार्ट होम दिखाया जा रहा है। इस स्मार्ट होम को स्कूली बच्चों की ओर से ही तैयार किया गया है। इस होम के दरवाजे मोबाइल की स्क्रीन को टच करने पर खुल रहे हैं और इसी स्क्रीन के टच करने से घर की लाइटें ऑन-ऑफ हो रही हैं। इतना ही नहीं इस घर की छत पर सोलर लाइटों के लिए लगाए गए सोलर पैनल भी सूरजमुखी के फूल की तरह सूरज की रोशनी के साथ घूम रहे हैं। ऐसे में अधिकतम ऊर्जा एकत्रित की जा रही है।
देश में आइओटी जागरूकता की पहल
जिला सूचना एवं विज्ञान केंद्र अधिकारी विनोद ङ्क्षसगला ने बताया कि विकसित देशों में उपयोग की जा रही आधुनिक तकनीकी को बहुत महंगा और कठिन समझा जा रहा है। लेकिन यह बहुत आसान है। हम छोटी-छोटी डिवाइस के इस्तेमाल से कई तरह के कामों को आसान बना सकते हैं। इस इनोवेशन हब में स्कूली बच्चों को यही सब समझाया जा रहा है। इसके लिए मौके पर ही कार्यशाला लगाकर स्कूली बच्चों को इन डिवाइस की कार्यप्रणाली और आइओटी के बारे में बताया जा रहा है।
शिल्पकार लेकर पहुंचे जंगला वाली बनारसी साड़ी और आगरा का लैदर बैग
लकड़ी के छोटे से छोटे टुकड़े को भी बेहतरीन सुंदर रूप प्रदान कर लोगों के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है, यदि इस अनूठी कला के दर्शन करने हों तो आपको अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में लगे शिल्प और सरस मेले का भ्रमण करना होगा। यहां उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के गांव खाताखेड़ी से आये जहीर अहमद व्यर्थ समझी जाने वाली लकडिय़ों के टुकड़ों को आकर्षक रूप में प्रदर्शित कर रहे हैं। जहीर अहमद को लकड़ी के विशालकाय पोट पर कारविन करने पर वर्ष 2010 में राष्ट्रीय अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
व्यर्थ पड़ी लकड़ी को तराशा
गीता महोत्सव में लकड़ी को तराशकर लाने वाले शिल्पकार जहीर अहमद का कहना है कि उन्होंने व्यर्थ पड़ी लकडिय़ों को तराशने का प्रयास किया तो एक से बढ़कर एक सुंदर आकृतियां बनने लगी। बस फिर वे पीछे नहीं हटे। उन्होंने बेकार समझ कर फेंकी जाने वाली लकडिय़ों के टुकड़े, फट्टियों, डंडियों, पेड़ की गांठ-जड़ आदि को एकत्रित करना शुरु कर दिया। इसके बाद अपनी कल्पनाशक्ति तथा प्रतिभा के बल पर उन्होंने व्यर्थ की लकडिय़ों को उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित करना प्रारंभ कर दिया। छोटी से छोटी लकड़ी के टुकडों को उन्होंने चाबी के छल्लों, अंग्रेजी के अक्षर, रसोई के सामान तथा महिलाओं-युवतियों की श्रंृगार वस्तुओं का रूप दिया है। इनकी यहां अच्छी मांग है। लकड़ी के थोड़े बड़े टुकड़ों से वे रसोईघर के अन्य सामानों का रूप दे रहे हैं। कुछ और बड़ी लकडिय़ां मिलती हैं तो उसकी सहायता से दीवार घड़ी तथा मूढ़े एवं बैठने की वस्तुएं बना रहे हैं। लकड़ी की फट्टियों से वे कुर्सियां भी बना रहे हैं। इसके अलावा वे लकड़ी का फर्नीचर बनाने में महारत रखते हैं। इसके अलावा डायनिंग टेबल, झूले, बैड, झूला कुर्सियों का अच्छा खजाना देखा जा सकता है।
जंगला वाली बनारसी साड़ी तैयार करने में लगता है 50 दिन का समय
दुनिया में बनारसी साड़ी का डंका बजता है और महिलाएं बनारसी साड़ी को बढ़े चाव से खरीदती हैं। इस बनारसी साड़ी ने भारत में ही नहीं विदेशों में भी अपनी एक पहचान स्थापित की है। इस बनारसी साड़ी को बनारस में तैयार किया जाता है और हजारों शिल्पकार इस व्यवसाय से जुड़कर अपना पालन पोषण करने के साथ-साथ इस शिल्पकला को भी जीवित रखने का काम कर रहे हैं। विश्व प्रसिद्ध बनारसी साड़ी को कुरुक्षेत्र और महोत्सव में आने वाले पर्यटक काफी पसंद करते हैं, यहां तक की इन शिल्पकारों का महोत्सव में पहुंचने का बेसब्री से इंतजार भी करते हैं। इस वर्ष भी पर्यटकों के इंतजार को समाप्त करने और बनारसी साड़ी को शिल्पकार मोहम्मद जसीम ने स्टाल नंबर 148 पर सजाया है। यह शिल्पकार पिछले सात सालों से महोत्सव में पहुंच रहा है। यहां पहुंचने पर मोहम्मद जसीम ने कहा कि बचपन से ही बनारसी साड़ी बनाने की शिल्पकला से जुड़े हुए हैं। इस बनारसी साड़ी पर जरी और कॉपर का पेंट किए हुए धागे से सजाया जाता है। इस बनारसी साड़ी पर जंगला वाली कढ़ाई करने पर वर्ष 2010 में दिल्ली में राष्ट्रीय प्रमाण पत्र देकर सम्मानित भी किया गया। इस बनारसी साड़ी को दो लोगों द्वारा तैयार करने में 50 दिन का समय लिया था और इसकी कीमत एक लाख रुपये तय हुई थी। इस महोत्सव में पर्यटकों के लिए एक हजार रुपये से लेकर 20 हजार रुपये तक की बनारसी साड़ी और हजार रुपये से लेकर 2500 रुपये तक का सूट लेकर आए हैं।
आगरा का लैदर बैग बना महोत्सव में महिलाओं की पंसद
आगरा के लैदर से तैयार किए गए बैग अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में आने वाली महिला पर्यटक खूब पंसद कर रही हैं। इन पर्यटकों की इच्छा को पूरा करने के लिए शिल्पकार पर्स से लेकर बेल्ट तक के समान को तैयार करके लाए हैं। शिल्पकार पवन भारद्वाज ने राष्ट्रीय अवार्ड के लिए अपना आवेदन भी इसी वर्ष जमा करवाया है और पूरी उम्मीद है कि यह राष्ट्रीय अवार्ड जरुर मिलेगा। महोत्सव में लैदर के समान को प्रदर्शित करने वाले शिल्पकार पवन भारद्वाज का कहना है कि गीता महोत्सव से एक पारिवारिक संबंध बन गया है, इसलिए पिछले कई सालों से अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में पहुंच रहे हैं। इस महोत्सव में इस बार बकरी की खाल से तैयार किया गया बैग लेकर आए हैं। इसके अलावा पुरुष और महिलाओं के लिए छोटे और बड़े पर्स, बेल्ट, बैग, की-रिंग व अन्य प्रकार का समान तैयार करके लाए हैं। उन्होंने कहा कि गीता महोत्सव का मंच शिल्पकलाओं को संरक्षित करने का काम कर रहा है। इससे कलाकारों को प्रोत्साहन मिल रहा है। प्रशासन की तरफ से महोत्सव में हर प्रकार के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं।
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